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जटिल जीवन

जटिल जीवन डगर तेरा आज मैं गुणगान कर लूँ । – २

मोम के तन को मिला है लौह का वरदान तुझ से ।

सुमन से मन को मिला है वज्र का उपमान तुझ से ।

जागरण की जननि सी आ आज तेरी माँग भर लूँ  ।।

जटिल जीवन…….।।१।।

सुधा के भ्रम में किया सुविधा सुधा का पान जब तक ।

अधर तक कब आ सका था मुक्त मन का गान तब तक ।

आज दुर्गम घाटियों में कण्ठ स्वर संधान कर लूँ ।।

जटिल जीवन…….।।२।।

राजपथ तज क्यों न जाने साथ तेरा है सुहाता ।

कंटकों के अलक जालों में उलझ मन मोद पाता ।

आज जड़ता को विदाकर चेतना मेहमान कर लूँ ।।

जटिल जीवन………।।३।।

देवि तुमने ही मुझे तो जगत में जीना सिखाया ।

फोड़कर चट्टान का उर मधुर जल पीना सिखाया ।

हे सजनि फिर क्यूँ तुम्हीं पर आज मैं अभिमान कर लूँ ।।

जटिल जीवन………..।।४।।

दूसरों के माप से ही मापता अब तक रहा मैं ।।

दूसरों के साज पर ही नाचता अब तक रहा मैं ।।

भग्न उर की बीन में फिर आज भैरव राग भर लूँ ।।

जटिल जीवन………..।।५।।

मीत जब कोई न आये तब मुझे आवाज़ देना ।

सुमन शय्या छोड़कर मैं आ मिलूँगा जान लेना ।

मधुर सपनों ने छला है गरल से पहचान कर लूँ ।।

जटिल जीवन………..।।६।।

✍️ कवि – श्री मदन गोपाल सारस्वत